मारबर्ग वायरस के केस बढ़ रहे Image Credit source: ROGER HARRIS/SCIENCE PHOTO LIBRARY/Getty Images
मंकीपॉक्स वायरस के बढ़ते खतरे के बीच दुनिया में मारबर्ग वायरस ने एक बार फिर से दस्तक दे दी है. अफ्रीका के कई देशों में इस वायरस के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. अफ्रीका में मारबर्क वायरस के 25 मामले दर्ज किए जा चुके हैं. 6 मरीजों की इससे मौत भी हो चुकी है. मारबर्क वायरस के बढ़ते खतरे को देखते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अफीक्रा सीडीसी को सावधानी बरतने की सलाह दी है. अफ्रीकी देशों में वायरस की रोकथाम और बचाव के लिए सख्त कदम उठाने की हिदायत दी गई है.
मारवर्ग वायरस कोविड से भी कई गुना खतरनाक है. इस वायरस से डेथ रेट करीब 70 से 90 फीसदी है,. जबकि कोविड में यह 2 फीसदी था. हालांकि मारबर्क कोई नया वायरस नहीं है. बीते साल भी इस वायरस के मामले सामने आए थे. साल 2023 में गिनी में मारबर्ग से 12 मरीजों की मौत हो गई थी. साल 2012 में भी इस वायरस से 10 से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी. हालांकि इस वायरस के मामले बड़े स्तर पर नहीं देखे जाते हैं, लेकिन अधिक मृत्युदर को देखते हुए इसको सबसे खतरनाक वायरस की लिस्ट में शामिल किया जाता है.
एक्सपर्ट्स बताते हैं कि मारबर्कवायरस खुद में बदलाव करता रहता है. म्यूटेशन के कारण इसके स्ट्रेन आते रहते हैं. यही कारण है कि हर बार ही ये वायरस जानलेवा साबित होता है.
कैसे फैलता है ये वायरस
मारबर्क वायरस संक्रमित चमगाड़ों से इंसान में फैलता है. फिर एक से दूसरे व्यक्ति में इसका ट्रांसमिशन होता है. नजदीकी संपर्क में आने से एक से दूसरा व्यक्ति इससे संक्रमित हो जाता है.मारबर्ग का बुखार ब्लड पर असर करता है और इसकी वजह से इंटरनल ब्लीडिंग होने लगती है. इसी वजह से इस बुखार को खतरनाक माना जाता है. इस वायरस को कोविड से अधिक खतरनाक माना जाता है. क्योंकि इसमें हर 100 संक्रमित मरीज में से 70 से 80 लोगों की मौत होने का रिस्क होता है. जबकि कोविड में यह आंकड़ा 2 का था. मारबर्क वायरस की वजह से मल्टी ऑर्गन फेल भी हो जाता है. ऐसे में मरीज की जान बचाना काफी मुश्किल होता है.
क्या होते हैं लक्षण
ठंड लगना
सिरदर्द
मांसपेशियों में दर्द
गले में खराश
स्किन पर दाने निकलना
कोविड की वैक्सीन है मारबर्क की नहीं
महामारी विशेषज्ञ डॉ जुगल किशोर बताते हैं कि मारबर्क वायरस कोविड की तुलना में काफी खतरनाक है. इस वायरस की कोई दवा या वैक्साीन नहीं है. केवल लक्षणों के आधार पर मरीज का इलाज किया जाता है. अगर मारबर्ग वायरस अंगों पर असर करने लगे और इसकी ब्लीडिंग शुरू हो जाए तो मरीज की जान बचाना काफी मुश्किल हो जाता है.