प्रोलैक्टिन का ऊंचा स्तर कई समस्याओं का कारण साबित होता है। वे महिलाएं जो प्रेगनेंट नहीं होती, उनमें इसका स्तर कम पाया जाता है। जानते हैं प्रोलैक्टिन का ऊंचा स्तर किस प्रकार पीरियड साइकल को बनाता है अनियमित
जीवनशैली में बढ़ रहा तनाव और अस्वस्थ खानपान कई समस्याओं को अपनी ओर आकर्षित करता है। इससे शरीर के हार्मोन में असंतुलन बढ़ जाता है, जो फर्टिलिटी से लेकर पीरियड साइकल को प्रभावित करता है। प्रोलैक्टिन का ऊंचा स्तर इन समस्याओं का मुख्य कारण साबित होता है। वे महिलाएं जो प्रेगनेंट नहीं होती, उनमें इसका स्तर कम पाया जाता है। जानते हैं प्रोलैक्टिन का ऊंचा स्तर किस प्रकार पीरियड साइकल को बनाता है अनियमित।
क्या है प्रोलैक्टिन हार्मोन (Prolactin hormone)
प्रोलैक्टिन हार्मोन पिट्यूटरी ग्रंथि से रिलीज़ होने वाला ऐसा हार्मोन है, जो सेक्सुअल एक्टिविटी, फर्टिलिटी और स्तनपान में मददगार साबित होता है। वे महिलाएं, जो गर्भवती नहीं है, उनमें इसका स्तर कम पाया जाता है। मगर शरीर में कई कारणों से इसका बढ़ा हुआ स्तर अनियमित महावारी और इनफर्टिलिटी का कारण साबित होता है।
शरीर में कितना हो प्रोलैक्टिन का स्तर (Prolactin level in body)
इस बारे में डैफोडिल्स बाय आर्टेमिस, ईस्ट ऑफ़ कैलाश, नई दिल्ली, सलाहकार, प्रसूति एवं स्त्री रोग विभाग, डॉ अपूर्वा गुप्ता ने विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने बताया कि सामान्य तौर पर जब प्रोलैक्टीन का स्तर 25 से 50 के बीच रहता है। तब शरीर में कुछ विशेष लक्षण दिखाई नहीं देते हैं।
पीरियड्स में भी कोई अनियमितता नहीं होती है। हालांकि प्रोलैक्टिन का यह स्तर गर्भधारण की क्षमता पर नकारात्मक प्रभाव डालने में सक्षम है। यदि स्तर 50 से ऊपर हो जाए तो पीरियड्स में अनियमितता होने लगती है और गर्भधारण की क्षमता काफी कम हो जाती है।
जानते हैं शरीर में प्रोलैक्टिन लेवल बढ़ने के संकेत (Signs of high prolactin level)
1. अनियमित पीरियड साइकल
शरीर में प्रोलैक्टिन का उच्च स्तर हॉर्मोन इम्बैलेंस का कारण बनने लगता है। इससे पीरियड साइकल डिस्टर्ब होने लगती है। दरअसल, बहुत अधिक प्रोलैक्टिन हमारे दिमाग को एफएसएच यानि फॉलिकन स्टीम्यूलेटिंग हार्मोन और एलएच ल्यूटिनाइजिंग हार्मोन को रिलीज़ होने से रोकता है। इसका प्रभाव पीरियड साइकल पर पड़ता है, जिससे डिले पीरियड और पीरियड न होने की समस्या बढ़ जाती है।
2. दूध जैसा स्राव
कुछ महिलाओं में स्तनों से सफेद दूध जैसा स्राव भी होने लगता है। प्रोलैक्टिन का स्तर 100 के ऊपर पहुंचना समय से पहले ही मेनोपॉज के लक्षण बना देता है और पीरियड्स पूरी तरह से रुक जाते हैं। ऐसी स्थिति में गर्भधारण संभव नहीं रह जाता है।
3. इनफर्टिलिटी का बढ़ना
प्रोलैक्टिन का उच्च स्तर ओव्यूलेशन की प्रक्रिया को स्लो कर देता है। इसके चलते ओवरीज़ धीरे धीरे एग रिलीज़ करती हैं या फिर एग रिलीज़ नहीं करती हैं। इस प्रकार ओवरीज़ स्लो प्रोसेस के साथ एग रिलीज़ करते हैं या फिर नहीं करते हैं। इससे नेचुरल प्रेगनेंसी का चांस कम होने लगता है।
4. हाइपरप्रोलैक्टीनेमिया का हो सकते हैं शिकार
पिट्यूटरी ग्लैंड में प्रोलैक्टिन बनाने वाली कोशिकाओं को लैक्टोट्रॉफ कहा जाता है। कभी.कभी ये कोशिकाएं जरूरत से ज्यादा प्रोलैक्टिन बनाने लगती हैं या फिर ये कोशिकाएं मिलकर गांठ बना देती हैं। इससे शरीर में प्रोलैक्टीन की मात्रा बढ़ जाती है। इस स्थिति को हाइपरप्रोलैक्टीनेमिया कहा जाता है।
मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित कुछ दवाओं का सेवन भी इसका कारण बन सकता है। आमतौर पर स्तनपान नहीं कराने वाली महिलाओं के रक्त में प्रोलैक्टिन का स्तर 25 नैनोग्राम प्रति मिलीलीटर से कम रहता है। इससे अधिक स्तर होना हाइपरप्रोलैक्टीनेमिया का लक्षण होता है।
प्रोलैक्टिन के लेवल पर भी नजर रखने की जरूरत
महिलाओं के शरीर में कई तरह के हार्मोन बनते हैं, जो शरीर की विभिन्न गतिविधियों के लिए जरूरी होते हैं। ऐसा ही एक हार्मोन है पिट्यूटरी ग्लैंड से स्रावित होने वाला प्रोलैक्टिन। यही हार्मोन प्रसव के बाद बच्चे के लिए दूध बनाने में भूमिका निभाता है। स्तनों के कुछ टिश्यू के विकास में प्रोलैक्टिन की अहम भूमिका रहती है। इसे लैक्टोट्रोपिन के नाम से भी जाना जाता है।
आमतौर पर गर्भावस्था से पहले सामान्य स्थिति में महिलाओं के शरीर में प्रोलैक्टिन का स्तर बहुत कम रहता है। लेकिन, अगर किसी कारण से प्रोलैक्टिन का स्तर बढ़ जाए तो शरीर में कई तरह की अनियमितताओं का खतरा बढ़ जाता है। पीरियड्स में अनियमितता भी इसका एक लक्षण हो सकती है।
दवा से इलाज संभव
प्रोलैक्टिन का स्तर बढ़ने की स्थिति में कुछ दवाएं कारगर पाई गई हैं। ये दवाएं प्रोलैक्टीन बनाने वाली कोशिकाओं की प्रक्रिया को बाधित करती हैं और प्रोलैक्टिन के स्राव को रोकती हैं। ब्लड प्रेशर में थोड़े बदलाव और उनींदेपन जैसे कुछ साइड इफेक्ट के अलावा इन दवाओं का कोई विशेष साइड इफेक्ट नहीं देखा गया है।
आमतौर पर दो से तीन हफ्ते में प्रोलैक्टीन का स्तर सामान्य हो जाता है। अगर कोशिकाओं ने गांठ बना ली हो, तो वह भी कुछ समय में खत्म हो जाती है।
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