क्लॉस्ट्रोफोबिया बंद और छोटी जगहों से लगने वाला एक प्रकार का डर है। इस डर से 12.5 फीसदी आबादी ग्रस्त है, जिसमें महिलाओं की तादाद ज्यादा हैं। क्लॉस्ट्रोफोबिया से ग्रस्त लोग बंद स्थानों से डरते है।
बहुत से लोगों को अंधेरे में जाने से डर लगता है। वे अकेले लॉबी या लिफ्ट में जाने से भी घबराते हैं। ऐसा लगता कि जैसे कोई अचानक से आकर पीछे से पकड़ लेगा। तंग जगह में फंसने, कैद होने या दीवार गिरने का डर इतना ज्यादा होता है कि उनके लिए सीटी स्कैन या एमआरआई करवाना भी मुश्किल हो जाता है। अगर आपके साथ भी ऐसा हो रहा है, तो ये क्लॉस्ट्रोफोबिया (claustrophobia) के संकेत हो सकता है। यह हल्के से लेकर गंभीर तक हो सकता है। अगर क्लॉस्ट्रोफोबिया की वजह से आपका डेली रुटीन और रोजमर्रा के काम बाधित हो रहे हैं, तो आपको इस पर ध्यान देना चाहिए। हेल्थ शॉट्स के इस लेख में हम क्लॉस्ट्रोफोबिया के लक्षण (Signs of claustrophobia) , कारण (Causes of claustrophobia) और क्लॉस्ट्रोफोबिया से उबरने के उपायों (tips to deal with claustrophobia) पर बात करेंगे।
क्लॉस्ट्रोफोबिया किसे कहते हैं (What is claustrophobia)
मनोचिकित्सक डॉ युवराज पंत बताते हैं कि क्लॉस्ट्रोफोबिया (claustrophobia) एक प्रकार का असंगत भय होता है यानि जिसका कोई आधार न हो। लोगों में पाई जाने वाली इस समस्या का रिएलिटी और तर्क से कोई संबध नहीं है। इससे ग्रस्त लोगों को अंधेरे कमरे में अकेले जाने या पब्लिक टॉयलेट इस्तेमाल करने में डर लगता है। उन्हें हर वक्त अपने साथ किसी न किसी व्यक्ति का साथ चाहिए होता है। अन्यथा उलझन, बेचैनी, सांस तेज़ चलने और पसीना आने का सामना करना पड़ता है। इसके अलावा कुछ प्रतिशत लोगों को पेनिक अटैक के कारण बेहोशी
का भी सामना करना पड़ता है।
नेशनल लाइब्रेरी आूफ मेडिसिन के अनुसार क्लॉस्ट्रोफोबिया बंद और छोटी जगहों से लगने वाला एक प्रकार का डर है। इस डर से 12.5 फीसदी आबादी ग्रस्त है, जिसमें महिलाओं की तादाद ज्यादा हैं। क्लौस्ट्रफ़ोबिया से ग्रस्त लोग बंद स्थानों से डरते है। फिर चाहे वो कोई गुफा हो, एमआइआई मशीन हो या भीड़भाड़ वाली जगह। ऐसी जगहों पर जाते ही उन्हें सांस लेने में तकलीफ का सामना करना पड़ता है।
युवाओं को ज्यादा होता है क्लॉस्ट्रोफोबिया का जोखिम (Young people are more at risk of claustrophobia)
इस बारे में मनोचिकित्सक डॉ युवराज पंत बताते हैं कि आमतौर पर ये समस्या 20 से 35 साल की उम्र के लोगों में ज्यादा देखने को मिलते हैं। वे लोग जो किसी भी प्रकार के फोबिया से ग्रस्त है, उनमें एंग्ज़ाइटी का जोखिम बढ़ जाता है। उनके व्यवहार में गुस्सा, चिड़चिड़ापन और चिंता बनी रहती है।
क्लॉस्ट्रोफोबिया के लक्षण (Signs of claustrophobia)
- सांस लेने में तकलीफ का सामना करना पड़ता है और छाती में खिंचाव महसूस होने लगता है। साथ ही दर्द की समस्या बनी रहती है।
- किसी अनचाही जगह पर पहुंचकर डर के कारण पसीना आना और सिरदर्द का सामना करना पड़ता है।
- अचानक से एंग्ज़ाइटी का बढ़ जाना, जिसके चलते हाथों और पैरों में नंबनेस महसूस होती है।
- मुंह सूखने लगता है और पेट में भी दर्द व ऐंठन बढ़ जाती है।
मुश्किल नहीं है क्लॉस्ट्रोफोबिया से उबरना (How to overcome claustrophobia)
1. कॉग्नीटिव बिहेवियरल थेरेपी (Cognitive behavioral therapy)
संज्ञानात्मक व्यवहार चिकित्सा यानि कॉग्नीटिव बिहेवियरल थेरेपी की मदद से तर्कहीन भय को दूर करने में मदद मिलती है। इससे नकारात्मक विचारों की रोकथाम की जाती है, जो क्लॉस्ट्रोफोबिया को ट्रिगर करने वाली स्थितियों से उत्पन्न होते हैं। विचारों में बदलाव आने से छोटी और बंद जगहों से लगने वाला डर कम हो जाता है।
2. एक्सपोज़र थेरेपी (Exposure therapy)
एक्सपोज़र थेरेपी का इस्तेमाल चिंता और डर की स्थिति से उभरने के लिए किया जाता है। इस थेरेपी के दौरान क्लॉस्ट्रोफोबिया को ट्रिगर करने के लिए एक ऐसी सिचुएशन तैयार की जाती है, जिससे डर पर काबू जा सके। बार बार ऐसी परिस्थितियों के संपर्क में आने से डर की भावना कम होने लगती है।
3. रिलैक्सेशन तकनीक है फायदेमंद (Relaxation technique)
मन में बसे डर को बाहर निकालने के लिए ब्रीदिंग और विजुअलाइजे़शन की मदद लें। दरअसल, डीप ब्रीदिंग एक्सरसाइज़ से मन में मौजूद विचारों को नियंत्रित किया जा सकता है। इसके अलावा एकचित्त होकर किसी चीज़ पर ध्यान लगाने से मसल्स में रिलैक्सेशन बढ़ने लगता है। साथ ही विजुअलाइजे़शन के लिए किसी ऐसी जगह को सोचने पर ज़ोर दिया जाता है, जिससे मन शांत रह पाए।
4. दवा की मदद लें (Medication)
थेरेपी से डर की भावना को नियंत्रित करने के अलावा डॉक्टरी जांच और सुझाव के बाद दवा लें। इससे मानसिक स्वास्थ्य उचित बना रहता है और फोबिया से बचा जा सकता है। एंटीडिप्रेसेंट या एंटी एंग्ज़ाइटी दवाएं दिमाग को सुकून पहंचाती है।